1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सैनिटरी पैड्स के निपटान के लिए अतिरिक्त शुल्क पर कोर्ट नाराज

आमिर अंसारी
७ मई २०२४

सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के उस नियम पर नाराजगी जाहिर की है जिसमें सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है.

https://p.dw.com/p/4fZY7
केरल सरकार के नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
केरल सरकार के नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका तस्वीर: Imago Images/Science Photo Library

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल सरकार के उस नियम पर नाराजगी जाहिर की है जिसमें सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूला जाता है. कोर्ट ने अफसोस जताया है कि राज्य का रुख मासिक धर्म स्वच्छता और सैनिटरी उत्पादों तक पहुंच के लिए अदालत की लगातार वकालत के विपरीत है.

केरल सरकार द्वारा सैनिटरी पैड्स और डायपर के निपटान के लिए लगाए गए अतिरिक्त शुल्क के नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है.

इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, "एक तरफ, हम स्कूलों और अन्य संस्थानों में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराकर मासिक धर्म स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी कर रहे हैं और दूसरी तरफ राज्य सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए शुल्क ले रहे हैं. यह कैसे हो सकता है? आप इस पर जवाब दें."

अदालत ने यह टिप्पणी इंदु वर्मा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर की. याचिकाकर्ता ने केरल सरकार के उस नियम पर रोक लगाने की मांग की है, जो इस्तेमाल किए गए सैनिटरी पैड्स और डायपर के निपटान के लिए लोगों से अतिरिक्त शुल्क वसूलने की अनुमति देता है.

सैनिटरी पैड्स उठाने के लिए शुल्क

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की बेंच के सामने याचिकाकर्ता ने कहा, "जब सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियमों में ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है, तो राज्य सैनिटरी कचरे को उठाने पर शहरवासियों से अतिरिक्त शुल्क कैसे ले सकता है? संबंधित विभाग द्वारा सौंपी गई एजेंसियों द्वारा लोगों को सैनिटरी नैपकिन, शिशु और वयस्क के डायपर के संग्रह के लिए अतिरिक्त भुगतान करने के लिए कहा गया है."

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान मासिक धर्म स्वच्छता प्रथाओं और आवश्यक स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच पर सैनिटरी कचरे के निपटान के लिए अतिरिक्त शुल्क के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता जताई.

कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा, "आपको सैनिटरी कचरे के लिए अतिरिक्त शुल्क क्यों लेना चाहिए? यह मासिक धर्म स्वच्छता के संबंध में हमारे निर्देशों के उद्देश्य के विपरीत होगा. आपको इसे उचित ठहराना होगा."

फ्री सैनिटरी पैड देने पर जोर

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छठी कक्षा से लेकर 12वीं तक हर छात्रा को मुफ्त सैनिटरी पैड और सभी रेसिडेंशियल और नॉन रेसिडेंशियल शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों का प्रावधान सुनश्चित करने का निर्देश जारी किया था.

इसके अलावा कोर्ट ने मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन पर राष्ट्रीय दिशानिर्देशों पर जोर दिया था. पिछले साल नवंबर में कोर्ट ने केंद्र सरकार को शैक्षणिक संस्थानों में कम लागत वाले सैनिटरी पैड्स, वेंडिंग मशीनों की उपलब्धता और उनके सुरक्षित निपटान पर नीति को अंतिम रूप देने का भी निर्देश दिया था.

माहवारी की जानकारी कम

बाल सुरक्षा के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ के 2022 के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 71 फीसदी किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी नहीं है. उन्हें पहली बार माहवारी होने पर इसका पता चलता है. और ऐसा होते ही उन्हें स्कूल भेजना बंद कर दिया जाता है.

एक सामाजिक संस्था दसरा ने 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया था कि 2.3 करोड़ लड़कियां हर साल स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. इनमें सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता और पीरियड्स के बारे में समुचित जानकारी शामिल है.

केरल के अतिरिक्त शुल्क वाले नियम पर सुप्रीम कोर्ट में इसी महीने आगे की सुनवाई होने की संभावना है.